इस तरह टूट कर गिरा पानी बादलों में नहीं बचा पानी घर बनाया तो था बुलंदी पर फिर भी आँगन में भर गया पानी लड़-झगड़ कर कभी तो आग बना और कभी बर्फ़ बन गया गया पानी मुझ को अपने ही शहर का यारो रास आया नहीं हवा पानी लोग दीवाना-वार टूट पड़े मुद्दतों बा'द जब मिला पानी हाथ थामे हुए हवाओं का रास्ते में हमें मिला पानी एक भी बूँद खेत को न मिली सब हवाओं ने पी लिया पानी ले के चुल्लू में मैं ने फेंक दिया मुँह मिरा देखता रहा पानी मुद्दतों से मैं तिश्ना-लब था 'ज़फ़र' फिर भी सब को पिला दिया पानी