इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं अपने दुश्मन के लिए हर्फ़-ए-दुआ रखता हूँ मैं मैं फ़क़ीरी में भी अहल-ए-ज़र से बेहतर ही रहा कुछ नहीं रखता मगर नाम-ए-ख़ुदा रखता हूँ मैं मैं कभी तन्हा नहीं होता सर-ए-कुंज-ए-चमन वो न हों तो हाथ में दस्त-ए-सबा रखता हूँ मैं मैं ने कम खोया सिवा पाया है कार-ए-इश्क़ में दिल जहाँ था अब वहाँ इक दिल-रुबा रखता हूँ मैं जाने कब आ जाए वो सहबा मिसाल-ए-फ़स्ल-ए-गुल इस लिए वीराना-ए-दिल को सजा रखता हूँ मैं