इस वहम की इंतिहा नहीं है सब कुछ है मगर ख़ुदा नहीं है क्या इस का सुराग़ कोई पाए जिस चीज़ की इब्तिदा नहीं है खुलता ही नहीं फ़रेब-ए-हस्ती कुछ भी नहीं और क्या नहीं है इस तरह सितम वो कर रहे हैं जैसे मेरा ख़ुदा नहीं है तुम ख़ुश हो तो है मुझे नदामत हर-चंद मिरी ख़ता नहीं है देखो तो निगाह-ए-वापसीं को इस एक नज़र में क्या नहीं है दुनिया का भरम न खोल ऐ आह ये राज़ अभी खुला नहीं है हर ज़र्रा है शाहिद-ए-तजल्ली इस हुस्न की इंतिहा नहीं है सरगर्म-ए-तलाश रहने वाले तेरा भी कहीं पता नहीं है उमडा है जो दिल 'अज़ीज़' रो लो आँसू कोई रोकता नहीं है