इस वक़्त अपने तेवर पूरे शबाब पर हैं सारे जहाँ से कह दो हम इंक़लाब पर हैं हम को हमारी नींदें अब छू नहीं सकेंगी जिस तक न नींद पहुँचे उस एक ख़्वाब पर हैं उन क़ातिलों के चेहरे अब तो उघारियेगा ताज़ा लहू के धब्बे जिन के नक़ाब पर हैं अपनी लड़ाई है तो केवल उसी महल से अपने लहू की बूँदें जिस के गुलाब पर हैं कैसे मिटा सकेगा हम को 'कुँवर' ज़माना हम दस्तख़त समय के दिल की किताब पर हैं