इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़ अम्र-ए-दुश्वार का ख़ुदा-हाफ़िज़ पेच मुझ पर पड़े जो पड़ना हो ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार का ख़ुदा-हाफ़िज़ सर जो टकराता हूँ तो कहते हैं मेरी दीवार का ख़ुदा-हाफ़िज़ सरफ़रोशों की चश्म-ए-बद न पड़े उन की तलवार का ख़ुदा-हाफ़िज़ दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैं इस गुनहगार का ख़ुदा-हाफ़िज़ दश्त छूटा तो आबलों ने कहा याँ के हर ख़ार का ख़ुदा-हाफ़िज़ बात करने में होंट लड़ते हैं ऐसे तकरार का ख़ुदा-हाफ़िज़ बुलबुलें क़ैद-ए-बाग़बाँ ग़ाफ़िल गुल-ए-ज़रदार का ख़ुदा-हाफ़िज़ गर 'सख़ी' को है इश्क़ का आज़ार ऐसे बीमार का ख़ुदा-हाफ़िज़