इश्क़ जब तक न आस-पास रहा हुस्न तन्हा रहा उदास रहा इक हसीं वाहिमा हसीं धोका मुद्दतों मरकज़-ए-क़यास रहा इश्क़ को अजनबी समझ के मिला हुस्न कितना अदा-शनास रहा फ़स्ल-ए-गुल में हुजूम-ए-गुल की जगह हर तरफ़ इक हुजूम-ए-यास रहा किस का दामन रहा है बे-पैवंद कौन आसूदा-ए-लिबास रहा वो जिसे तेरा मुस्तक़िल ग़म है तेरी महफ़िल में भी उदास रहा हाए वो ख़ंदा-ए-ख़फ़ी कि 'ज़हीर' दिल पशेमान-ए-इल्तिमास रहा