इश्क़ का भी क़बील होता है दर्द दिल का कफ़ील होता है याद आया न कर नमाज़ों में मेरा सज्दा तवील होता है बे-वफ़ाओं के ज़िक्र में तेरा तज़्किरा बर-सबील होता है अर्सा-ए-ज़ीस्त तुम ज़रा सोचो हाए कितना तवील होता है ऐ शब-ए-ग़म हर एक पल तेरा मुझ को सदियाँ मसील होता है अश्क जो इश्क़ ने बहाया वो आशिक़ों का वकील होता है तन्हा बे-चारा सा ये मेरा दिल तेरे बिन अब अलील होता है