इश्क़ का फ़ैसला नहीं होता मुद्दआ भी अदा नहीं होता भूल जाता हूँ सब गुनाह के वक़्त जैसे मेरा ख़ुदा नहीं होता कौन समझेगा दिल की बेताबी उस पे जब आसरा नहीं होता ग़ैर से मिलते हैं वो छुप छुप कर गोया मुझ को पता नहीं होता दम-ए-आख़िर भी वो न आए 'हयात' ये भी मुझ से गिला नहीं होता