इश्क़ का राज़ न क्यूँ दिल से नुमायाँ हो जाए काश ये भी किसी नाकाम का अरमाँ हो जाए नहीं उम्मीद कि वो हश्र-ब-दामाँ हो जाए ऐसा दीवाना जो ख़ुद दाख़िल-ए-ज़िंदाँ हो जाए दर्द क़ाबू का नहीं काश वो उठ कर शब-ए-ग़म सरगुज़िश्त-ए-दिल-ए-नाशाद का उनवाँ हो जाए न तसल्ली न दिलासा न कहीं नाम को सब्र हैफ़ इस दिल पे कि यूँ बे-सर-ओ-सामाँ हो जाए ग़ुंचे चटकें कि खिलें फूल बढ़े जोश-ए-नुमू हुस्न-ए-पिन्हाँ किसी उनवाँ से नुमायाँ हो जाए