इश्क़ के जाँ-निसार जीते हैं ब'अद मरने के यार जीते हैं ज़हर-ए-हसरत चशीदगान-ए-फ़िराक़ हैं मुओं में हज़ार जीते हैं दुश्मनों पर तू तेग़ यार न खींच अभी तो दोस्त-दार जीते हैं तू जहाँ जाए मिस्ल-ए-आब-ए-हयात मुर्दे अब एक बार जीते हैं एक दिन दाव है हमारा भी यहाँ बाज़ी तो यार जीते हैं बिन अजल कोई मर नहीं सकता जी को हम मार मार जीते हैं ग़म-ए-हिज्राँ की कुछ नहीं पूछ 'रज़ा' शुक्र-ए-पर्वरदिगार जीते हैं