इश्क़ के शहर की कुछ आब-ओ-हवा और ही है उस के सहरा को जो देखा तो फ़ज़ा और ही है तुझ से कुछ काम नहीं दूर हो आगे से नसीम वा करे ग़ुंचा-ए-दिल को वो सबा और ही है नब्ज़ पर मेरी अबस हाथ तू रखता है तबीब ये मरज़ और है और इस की दवा और ही है गुल तो गुलशन में हज़ारों नज़र आए लेकिन उस के चेहरे को जो देखा तो सफ़ा और ही है ज़ाहिदो विर्द-वज़ाइफ़ से नहीं हासिल-ए-कार जिस को हो हुस्न-ए-इजाबत वो दुआ और ही है ऐ जरस हरज़ा-दिरा हो न तू इतना चुप रह पहुँचे पस-माँदा ब-मंज़िल वो सदा और ही है मोहतसिब हम से अबस कीना रखे है 'हातिम' जो नशा हम ने पिया है वो नशा और ही है