इश्क़ की बात वफ़ाओं की कहानी रख दे हो गई आज हर इक रस्म पुरानी रख दे मुंतज़िर है मिरी पेशानी किसी सूरज की अपने होंटों से जो तू एक निशानी रख दे गुफ़्तुगू मेरी मिरा दोस्त समझता ही नहीं उस के दिल में मिरे लफ़्ज़ों के मआ'नी रख दे वो भी सैराब हों सदियों से जो प्यासे ही रहे ख़ुश्क सहराओं में दरियाओं का पानी रख दे मैं 'शरर' बोलूँ तो ऐवान-ए-सियासत जल जाए मेरे अल्फ़ाज़ में वो शो'ला-बयानी रख दे