इश्क़ को दुनियावी बाज़ार नहीं कर सकते दिल से दिल के दिल पे वार नहीं कर सकते इश्क़ में अपनी जान लगा दी और लुटा दी अब हम फिर से वैसा प्यार नहीं कर सकते उस को चाहा और चाहत पर क़ाएम भी हैं पर अफ़्सोस के हम इज़हार नहीं कर सकते उस की ही तस्वीर समाई है आँखों में अब हम तुम से आँखें चार नहीं कर सकते इश्क़ मोहब्बत प्यार वफ़ा सब बीमारी है अब हम फिर ख़ुद को बीमार नहीं कर सकते बहर-ए-'मीर' में लिखी हैं मैं ने कुछ ग़ज़लें बिन बहरों के हम अशआ'र नहीं कर सकते इतना हक़ तो मैं ने ख़ुद को भी न दिया है मेरे प्रेम का तुम इंकार नहीं कर सकते मेरे हाथ पे पाँव रखो और तुम निकलो ना अब हम दोनों दलदल पार नहीं कर सकते