इश्क़ में क्या हाथों से किसी के दामन-ए-हस्ती छूट गया शम्अ कोई ख़ामोश हुई या कोई सितारा टूट गया खेल रही है बर्क़-ए-तबस्सुम फूल से नाज़ुक होंटों पर जानिए किस की मौत आई है किस का मुक़द्दर फूट गया कौन था ये बीमार-ए-मोहब्बत जिस की बालीं पर आ कर हुस्न भी दरिया दरिया रोया इश्क़ भी सीना कूट गया तेरी भी तस्वीर थी उस में इस का मुझ को रोना है वर्ना दिल की हस्ती क्या है शीशा था सो टूट गया सैल-ए-मोहब्बत के था मुक़ाबिल दिल का हबाब-ए-नाज़ुक भी लेकिन ये अब याद नहीं है कब उभरा कब फूट गया इश्क़ ने कैसी आफ़त ढाई सब मयख़ाने ख़ाली हैं कौन-ओ-मकाँ की सारी मस्ती उन आँखों में कूट गया आह-ए-मोहब्बत का रिश्ता था नाज़ुक से भी नाज़ुक-तर अब इस को किस तरह से जोड़ें टूट गया सो टूट गया अव्वल अव्वल ज़ौक़-ए-मोहब्बत था मस्ती-ए-बे-पायाँ आख़िर आख़िर वक़्त वो आया सहर-ए-मोहब्बत टूट गया नाज़ मिरी सरमस्ती को क्या क्या था शराब-ओ-साक़ी पर उस की आँखों को जो देखा हाथ से साग़र छूट गया रात किसी की बज़्म में गो बेदार था मैं हुश्यार था मैं लेकिन कोई आँख बचा कर दिल की बस्ती लूट गया