इश्क़ में क्या काम करती अक़्ल-ओ-दानाई की बात दो-क़दम आगे चली इज़्ज़त से रुस्वाई की बात वक़्त-ए-मुश्किल ग़ैर क्या अपने भी दुश्मन बन गए कह गया है जोश में दीवाना गहराई की बात काम करता है तसव्वुर काम आती है नज़र बे-सबब होती नहीं है जल्वा-आराई की बात मुस्कुराता हूँ तो आँखों में मचल जाते हैं अश्क दर्द में घुल-मिल गई है एक हरजाई की बात पर्दा-दारी की नुमाइश हो रही है रोज़-ओ-शब इक तमाशा बन गई है ख़ुद तमाशाई की बात ख़ुद-बख़ुद पैरों से रिसता है 'ख़िज़र' मेरे लहू जब कोई करता है मुझ से आबला-पाई की बात