इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है फ़िक्र-ए-असबाब-ए-वफ़ा दरकार है चाक करने जामा-ए-सब्र-ओ-क़रार दिलबर-ए-रंगीं क़बा दरकार है हर सनम तस्ख़ीर-ए-दिल क्यूँकर सके दिलरुबाई कूँ अदा दरकार है ज़ुल्फ़ कूँ वा कर कि शाह-ए-इश्क़ कूँ साया-ए-बाल-ए-हुमा दरकार है रख क़दम मुझ दीदा-ए-ख़ूँ-बार पर गर तुझे रंग-ए-हिना दरकार है देख उस की चश्म-ए-शहला कूँ अगर नर्गिस-ए-बाग़-ए-हया दरकार है अज़्म उस के वस्ल का है ऐ 'वली' लेकिन इमदाद-ए-ख़ुदा दरकार है