इश्क़ में ये हुई हालत तिरे दीवाने की अब न जीने की तमन्ना है न मर जाने की रक़्स मीना का कभी शोख़ियाँ पैमाने की याद आती हैं फ़ज़ाएँ तिरे मयख़ाने की कुछ इस अंदाज़ से तरतीब दिया है मैं ने तुम से तशरीह न होगी मिरे अफ़्साने की मेरी क़िस्मत ही में लिक्खी थी तबाही ऐ दोस्त है शिकायत मुझे अपने की न बेगाने की वो भी बीमार-ए-मोहब्बत का उड़ाते हैं मज़ाक़ देख कर जिन को तवक़्क़ो थी सँभल जाने की क्यूँ न तौक़ीर करें आज मिरी अहल-ए-हरम ख़ाक छानी है बहुत मैं ने सनम-ख़ाने की हिज्र आलाम ख़लिश सोज़ तड़प दर्द-ए-जिगर सुर्ख़ियाँ हैं ये मिरे इश्क़ के अफ़्साने की