इश्क़ ने हम को जुनूँ-आसार ऐसा कर दिया बस्ता-ए-साहिल भी रक्खा और दरिया कर दिया इस गुलिस्तान-ए-गुमाँ में हम भी थे मानिंद-ए-ख़्वाब गरमी-ए-अंदेशा ने हम को भी सहरा कर दिया दीदा-ए-ख़ुश-बीं की ये ए'जाज़-फ़रमाई तो देख कैसे मुबहम ख़ाल-ओ-ख़त को एक चेहरा कर दिया ये जहाँ पिन्हाँ था इक बे-मंज़री की ख़ाक में हम ने चश्म-ए-शौक़ से देखा तो दुनिया कर दिया रौश्नी-ए-तब्अ' ने रौशन किया है इक जहाँ और मुझे इस आइना-ख़ाने में तन्हा कर दिया जब कभी शब-ज़ाद लम्हे घेरने आए हमें हम ने शम-ए-जाँ जलाई और सवेरा कर दिया ये करामत भी अजब उस की मसीहाई में है जो ब-ज़ाहिर भर दिया वो ज़ख़्म गहरा कर दिया मुंतज़िर था वक़्त सो हम ने ब-अंदाज़-ए-सुख़न आरज़ू का इक जहान-ए-ताज़ा पैदा कर दिया