इश्क़ ने तुझ ख़ाल के मुझ कूँ ख़याली किया दिल कूँ ख़यालात सूँ ग़ैर के ख़ाली किया फ़िक्र पहुँचती नहीं मिस्रा-ए-सानी कहूँ हक़ ने तेरे क़द के तईं मिस्रा-ए-आली किया हिज्र में जागीर-ए-ऐश-ए-मजनूँ हुई थी तग़य्युर वस्ल के दीवान ने फिर के बहाली किया गुलशन-ए-इशरत का वो क्यूँ न नज़ारा करे तुझ चमन-ए-हुस्न का दिल कूँ जो माली किया बोसा उसे दे जवाब यू है जो अब सवाब तुझ अंगे 'दाऊद' ने लब कूँ सवाली किया