इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल By Ghazal << आँखों की नदी सूख गई फिर भ... बुलबुल का दिल ख़िज़ाँ के ... >> इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल जलने वाला जल बुझेगा शम-ए-सोज़ाँ देख कर ऐ मआज़-अल्लाह वहशी और सलामत पैरहन शर्म दामन-गीर होती है गरेबाँ देख कर Share on: