इश्क़ तक अपनी दस्तरस भी नहीं और दिल माइल-ए-हवस भी नहीं अब कहाँ जाएँगे ख़राब-ए-बहार आशियाँ भी नहीं क़फ़स भी नहीं बर्क़ की बेकसी को रोता हूँ अब नशेमन में ख़ार-ओ-ख़स भी नहीं किस ने देखा शगुफ़्तगी का मआल ज़िंदगी इतनी दूर-रस भी नहीं हम असीरों के वास्ते सरशार रस्म-ए-पाबंदी-ए-क़फ़स भी नहीं