इश्क़-ए-जान-ए-जहाँ नसीब हुआ इक ज़माना मिरा रक़ीब हुआ मर गए हम मसीह के दम में ये भी इक वाक़िआ' अजीब हुआ उन से कह दो कि आप पर आशिक़ बेकस-ओ-बे-वतन ग़रीब हुआ न सुने नाले क्या किसी गुल ने तुझ को क्या रंज अंदलीब हुआ पास आदाब-ए-हुस्न-ए-यार रहा इश्क़ मेरे लिए अदीब हुआ जब नकीरैन ने सवाल किए या-अली कह के मैं मुजीब हुआ मेरा सर होगा और उन के पाँव यावर अपना अगर नसीब हुआ जब हुआ क़ब्र में सवाल ऐ 'मेहर' या-अली कह के मैं मुजीब हुआ