इश्क़-ए-कामिल वबाल साहब कर गया है निढाल साहब इश्क़ आतिश है मन पिघलता मुझ से धागा निकाल साहब तुझ को खो कर भी आस ज़िंदा इस को कहते कमाल साहब रोज़-ए-यौम-ए-हिसाब मेरा इस क़यामत को टाल साहब जीत मेरी है हार गोया फिर से सिक्का उछाल साहब तेरी नफ़रत का आसरा है कब हुआ है मलाल साहब तेरी शमशीर ख़ून माँगे मेरा क़ुर्आ निकाल साहब तुम जो पत्थर मिज़ाज ठहरे आइनों का ख़याल साहब फिर हवा में उड़ा दे चिलमन मुझ को हैरत में डाल साहब