'इश्क़ में मुब्तला किया ख़ुद को ख़ुद ही ख़ुद से जुदा किया ख़ुद को पहले उस को बनाया है मंज़िल और फिर रास्ता किया ख़ुद को मैं भी पहचानने से क़ासिर हूँ तुम ने आख़िर ये क्या किया ख़ुद को ओढ़ ली पंछियों ने ख़ामोशी मैं ने जब बे-नवा किया ख़ुद को खुल के इन अजनबी ज़मीनों में उस ने बे-ज़ाइक़ा किया ख़ुद को पेश-कश प्यार की भी ठुकरा दी और बे-आसरा किया ख़ुद को