इश्क़ में सोच का रुख़ मोड़ दिया जाता है और दीवार से सर फोड़ दिया जाता है हिज्र दे कर तो सभी मार दिए जाते हैं हाए वो शख़्स जिसे छोड़ दिया जाता है एक लम्हे में हुए क़ैद ज़माने कितने वक़्त से वक़्त यहाँ जोड़ दिया जाता है इश्क़ फिर अपनी पनाहों में उसे रखता है जिस को बे-रहम-ओ-करम छोड़ दिया जाता है अब ज़रा सीख ले ख़ामोश तकल्लुम करना कासा-ए-हर्फ़ यहाँ तोड़ दिया जाता है