जो म'अबद में दिया जलाने आती थी वो लड़की क्यूँ अँधियारों की नज़्र हुई वो जिस ने अश्कों से हार नहीं मानी किस ख़ामोशी से दरिया में डूब गई रेत पे मेरे और तुम्हारे क़दमों की इक तहरीर थी सो वो दरिया-बुर्द हुई लफ़्ज़ों के शहज़ादे का रस्ता देखे जंगल में रहने वाली भोली लड़की तेरी मुख़्बिर तेरी ही हमराज़ कनीज़ मेरी दुश्मन मेरी एक सहेली थी भूक ही पाले अपनी कोख में मेरी माँ बाँझ दुआएँ मेहनत वाले हाथों की वो घर जिस के ताक़ में दिया न था लेकिन सेहन में एक कुंडारी रक्खी रहती थी