इशरत की हक़ीक़त क्या हस्ती की मुसीबत क्या मेरे लिए दुनिया में अब रंज क्या राहत क्या उफ़ वुसअ'त-ए-सहरा-ए-हस्ती की ये कोताही सब क़ैदी-ए-ज़िंदाँ हैं मैं क्या मिरी वहशत क्या रोऊँ तो सुकूँ पाए तड़पूँ तो मज़ा आए पाई है मुक़द्दर से ज़ालिम ने तबीअ'त क्या किस हाल में होना था किस हाल को जा पहुँची है जिंस-ए-वफ़ा तेरी बाज़ार में क़ीमत क्या जब ख़ुद को मिटा डाला घर-बार लुटा डाला जब जा के ये जाना है होती है मुरव्वत क्या आँखों से टपक जाए या ख़ाक में मिल जाए दिल क्यों रहे सीने में अब इस की ज़रूरत क्या ऐ 'ख़िज़्र' धड़कता है दिल क्यों मिरा रह रह कर हैराँ हूँ बताऊँ भी इस बात की बाबत क्या