इश्वा क्यूँ दिल-रुबा नहीं होता ग़म्ज़ा क्यूँ हश्र-ज़ा नहीं होता आज़माएँ लहू को रंग-ए-हिना खुल गया देर-पा नहीं होता जान देते हो उन के वा'दों पर जिन का वा'दा वफ़ा नहीं होता आइना उस को देता है तर्ग़ीब जो कोई ख़ुद-नुमा नहीं होता कब नहीं होती फ़िक्र किस लम्हा दोश पर तस्मा-पा नहीं होता जिस की लौ से चमक उठी है मिज़ा ऐसा नावक ख़ता नहीं होता ज़ेब-ए-तन जामा आईना-पैकर कोई पहलू छुपा नहीं होता संग कह कर पुकारिए उस को दिल जो दर्द-आश्ना नहीं होता खाता है आदमी नज़र के फ़रेब दीदा-ए-दिल जो वा नहीं होता नाले को दस्तरस नहीं न सही हाथ ख़ुद क्यूँ रसा नहीं होता