इसी दर से इसी दीवार से आगे नहीं बढ़ता ये कैसा प्यार है जो प्यार से आगे नहीं बढ़ता हमारी ख़्वाहिशें इज़हार की हद तक नहीं जातीं हमारा हौसला दीदार से आगे नहीं बढ़ता हमारी ज़िंदगी में एक सुस्ती सी मुसलसल है हमारा ख़ून इस रफ़्तार से आगे नहीं बढ़ता किसी के हाथ से पी कर किसी को भूल जाते हैं हमारा दर्द इस मेआ'र से आगे नहीं बढ़ता हमारी ज़िंदगी लोगों में रह कर भी अकेली है हमारा रास्ता बाज़ार से आगे नहीं बढ़ता अजब इक क़हत है उस आँख में तेरे हवाले से छलक कर अश्क भी रुख़्सार से आगे नहीं बढ़ता हमारी जुस्तुजू है हम तिरे इक़रार तक पहुँचें हमारा ख़्वाब इक इंकार से आगे नहीं बढ़ता हमारी सोच तेरी गर्द-ए-पा को छू नहीं सकती हमारा ज़ेहन इस आज़ार से आगे नहीं बढ़ता हमारी आरज़ू 'ज़ीशान' पूरी ही नहीं होती हमारा मसअला अख़बार से आगे नहीं बढ़ता