इसी ख़याल इसी ग़म में ढल गया हूँ मैं बदल गए हो तुम्हीं या बदल गया हूँ मैं तिरी नज़र का ये एहसान कौन भूलेगा कि लग़्ज़िशों की बदौलत सँभल गया हूँ मैं गले लगा लिया ख़ुद शो'ला-ए-मोहब्बत को अजीब बात है दानिस्ता जल गया हूँ मैं नज़र ज़माने की छोड़ आई थी जहाँ मुझ को अब इस मक़ाम से आगे निकल गया हूँ मैं मिरा वजूद भी अब है मिरी हयात पे बार अजब नहीं कि ज़मीं को भी खल गया हूँ मैं जहाँ किसी ने मोहब्बत से मुझ को याद किया ब-सद-ख़ुलूस वहाँ सर के बल गया हूँ मैं 'शफ़क़' पसीने पसीने हुए वो जाने क्यों कभी जो थाम के दामन मचल गया हूँ मैं