इसी लिए तुझे देता हूँ दाद नफ़रत की कि तू ने इश्क़ से पर-ए'तिमाद नफ़रत की कोई न दिल से किसी को निकाल कर फेंके कभी न पूरी हो मौला मुराद नफ़रत की कभी कभी वो मुझे प्यार इतना देता था कभी कभी बहुत आती थी याद नफ़रत की गुलाब सूख गए हैं हुए हैं ख़ार हरे हवस ने प्यार में डाली है खाद नफ़रत की ये दोस्त बरसर-ए-पैकार होने लग गए हैं तो वज्ह बनने लगी है फ़साद नफ़रत की उस एक शख़्स को चाहूँगा ता-दम-ए-आख़िर वो जिस ने मुझ से मोहब्बत के बा'द नफ़रत की न कोई तीर न साज़िश न तोहमतें न हसद किसी ने मुझ से बड़ी बे-स्वाद नफ़रत की कि उस का दर्द मोहब्बत के दुख से थोड़ा है ये बात अच्छी है इस ना-मुराद नफ़रत की मैं इस लिए भी मोहब्बत से बाज़ आ गया था कि उस के शहर में मिलती थी दाद नफ़रत की