इसी मामूरे में कुछ ऐसे हैं सौदाई भी जिन के काम आ न सकी तेरी मसीहाई भी शुक्र है आप को मेरे लिए ज़हमत न हुई लीजिए कट गई मेरी शब-ए-तन्हाई भी बढ़ सकी जिस से न अंगुश्त-ब-लब नादानी उसी मंज़िल में नज़र आती है दानाई भी अल्लाह अल्लाह रे गिराँ-जानी-ए-बीमार-ए-वफ़ा ना-तवानी भी है हैरान तवानाई भी वो भी तिनका न मिला हाथ बढ़ाया था जिधर छुट गया हाथ से दामान-ए-शकेबाई भी हम यहीं बैठे रहे हसरत-ए-पा-बोस लिए चूम कर पर्दा-ए-दर बाद-ए-सबा आई भी शाइरी इक दिल-ए-मरहूम का मातम ही नहीं चाहिए इस में 'रज़ा' फ़िक्र की गहराई भी