इसी सबब से ख़िज़ाँ हम को नागवार नहीं बहार भी तो हमारे लिए बहार नहीं हवस की धूप में तपते हैं ग़ुंचा-ए-नौरस चमन में कोई शजर आज साया-दार नहीं न जाने क्या हुए हम-राहियान-ए-मंज़िल-ए-शौक़ हमारी हद्द-ए-नज़र तक कोई ग़ुबार नहीं जुनून-ए-इश्क़ के अंजाम की ख़बर क्या हो अभी तो अपना गरेबाँ भी तार-तार नहीं ख़ुलूस उठ गया कुछ इस तरह ज़माने से कि जिन पे नाज़ था अब वो भी ग़म-गुसार नहीं ये दर्द-ओ-रंज-ओ-अलम कम हैं क्या क़यामत से हमें मज़ीद क़यामत का इंतिज़ार नहीं हमें तू आज ही आज़ाद कर दे ऐ सय्याद कि अब हमें तिरे वा'दों पे ए'तिबार नहीं गुज़ार लेंगे यूँही अपनी ज़िंदगी 'साबिर' किसी के लुत्फ़-ओ-करम पर ही इंहिसार नहीं