इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें इस क़ौम पर ख़ुदा ने उतारा नहीं हमें ढूँडें कहाँ सहर को तुम्हें ऐ ग़ज़ाल-ए-शब अब नाम भी तो याद तुम्हारा नहीं हमें अब क्या सँवर सकेंगे हम आवारगान-ए-इश्क़ सदियों के जब्र ने तो सँवारा नहीं हमें हाथों में है हमारे गरेबान-ए-काएनात लेकिन अभी जुनूँ का इशारा नहीं हमें ढूँडो कोई नई रविश-ए-शाइरी 'ज़फ़र' उस्लूब दूसरों का गवारा नहीं हमें