इस्म पढ़ा और जिस्म से उठ कर इश्क़ उठाया दिल दरवेश ने मस्त क़लंदर इश्क़ उठाया फ़र्श पे अर्श के बाद मुकर्रर इश्क़ उठाया रूह ने अब के जिस्म के अंदर इश्क़ उठाया शाइ'र सूफ़ी फ़ल्सफ़ा-दान वली पैग़मबर सब ने अपने ज़र्फ़ बराबर इश्क़ उठाया नींद से जागे सर पर दुनिया-दारी ढोई आँख लगी और ख़्वाब के अंदर इश्क़ उठाया उस को इश्क़ ख़ुद आप उठा कर ले गया आगे जिस ने हिम्मत की और बढ़ कर इश्क़ उठाया सच्चा झूटा ख़ाम हक़ीक़ी और मजाज़ी लेकिन हम ने सब से बेहतर इश्क़ उठाया जिस दिन सब अपने हाथों में नामे लाए हम ने तो उस दिन भी सर पर इश्क़ उठाया हज़रत-ए-क़ैस ने ख़ुद आ कर गठड़ी उठवाई मैं ने जब अपने काँधों पर इश्क़ उठाया एक बदन दो जिस्म हुआ था जिस ख़्वाहिश पर उस ख़्वाहिश ने पैकर पैकर इश्क़ उठाया ये दीवानगी दीवाने-पन से नहीं आई हम ने 'अहमद' सोच-समझ कर इश्क़ उठाया