इस्मत का है लिहाज़ न परवा हया की है ये सिन ग़ज़ब का है ये जवानी बला की है सच पूछिए तो नाला-ए-बुलबुल है बे-ख़ता फूलों में सारी आग लगाई सबा की है दिल है अजीब गुल चमन-ए-रोज़गार में रंगत तो फूल की है मगर बू वफ़ा की है ख़ल्वत में क्यूँ ये साथ हैं सब को अलग करो शोख़ी का है न काम न हाजत हया की है वो हाथ उन के चूमती है मैं हूँ पाएमाल ये हैं मिरे नसीब वो क़िस्मत हिना की है अंजाम क्या हो दाग़-ए-मोहब्बत का देखिए सीने में इब्तिदा से जलन इंतिहा की है मौसम यही तो पीने-पिलाने का है जलील मय-ख़्वार बाग़ बाग़ हैं आमद घटा की है