इतना बतला मुझे हरजाई हूँ मैं यार कि तू मैं हर इक शख़्स से रखता हूँ सरोकार कि तू कम-सबाती मिरी हर दम है मुख़ातिब ब-हबाब देखें तो पहले हम उस बहर से हों पार कि तू ना-तवानी मिरी गुलशन में ये ही बहसे है देखें ऐ निकहत-ए-गुल हम हैं सुबुक-बार कि तू दोस्ती कर के जो दुश्मन हुआ तू 'जुरअत' का बेवफ़ा वो है फिर ऐ शोख़ सितमगार कि तू