इतना भी न साक़ी होश रहा पी कर ये हमें मय-ख़ाना था गर्दिश में हमारी क़िस्मत थी चक्कर में तिरा पैमाना था महरूम था सोज़-ए-उल्फ़त से जल जाने से बेगाना था फ़ानूस के अंदर शम्अ रही बाहर बाहर परवाना था मय-ख़ाने से हम रुख़्सत जो हुए तो और ही कुछ मय-ख़ाना था इक कोने में ख़ुम रखा था इक गोशे में पैमाना था हूँ रंग-ए-मोहब्बत से वाक़िफ़ हूँ सोज़-ए-मोहब्बत से वाक़िफ़ गुलज़ार में बुलबुल मैं था कभी महफ़िल में कभी परवाना था दामन में जो चुन कर रखता था सब जैब-ओ-गरेबाँ के टुकड़े होश्यार वही दीवाना था दीवाना वो कब दीवाना था