इतनी मुश्किल में कभी पहले तो जाँ आई न थी ऐ मोहब्बत जब मिरी तुझ से शनासाई न थी ज़िंदगी में सैंकड़ों ग़म थे तिरे ग़म के सिवा दिल में वीराने तो थे पर इतनी तन्हाई न थी रहगुज़र थी हादसे थे फ़ासला था धूप थी बरहना-पाई थी लेकिन आबला-पाई न थी बच के तूफ़ाँ से किसी सूरत निकल आए मगर हम वहाँ डूबे जहाँ दरिया में गहराई न थी ऐ मसीहा देखने निकला था मैं तेरा निज़ाम हर तरफ़ तू था मगर तेरी मसीहाई न थी अपने ज़ख़्मों की नुमाइश बे-हिसों के शहर में इस दिल-ए-मुज़्तर की नादानी थी दानाई न थी