जा के सूरज से मिला दिन में भी घर से निकला बा'द मुद्दत मैं चराग़ों के असर से निकला अब तो मिल जाती हैं हर मोड़ पे आँखें अच्छी तेरी आँखों का वो काँटा भी नज़र से निकला कितनी कम-गो थी मिरी जान-ए-सुख़न वो ख़ुश्बू बात करने का बहाना भी अगर से निकला जाने किस किस को दिए मेरे हज़ारों दिल थे ये ख़ज़ाना मिरे सीने के खंडर से निकला मुझ को तो गर्दिश-ए-दौराँ ने दिया है लहजा मेरा मतलब तो इसी ज़ेर-ओ-ज़बर से निकला वो भी महफ़िल में चली आई है पीछे पीछे मैं तो घर से इसी तन्हाई के डर से निकला जिस की छाँव में सुकूँ पाएँ सुख़न के पंछी पेड़ वो मेरी ही मेहनत के समर से निकला मुझ को ले डूबी फ़रावानी ये सीम-ओ-ज़र की सारा मेहनत का मज़ा लुक़्मा-ए-तर से निकला हो-न-हो इस में कोई राज़ छुपा है 'अख़्तर' काम अक्सर तो ख़ुदा का भी बशर से निकला