जा नहीं सकती जिधर जाने को जी चाहता है इन दिनों यूँ है कि मर जाने को जी चाहता है घर में रहती हूँ तो बाहर की हवा खींचती है घर से जब निकलूँ तो घर जाने को जी चाहता है मैं ने कब बाँध के रखा है तुम्हें पल्लू से तुम चले जाओ अगर जाने को जी चाहता है अहद तो था कि न तोडुँगी मैं हद्द-ए-फ़ासिल आज वा'दे से मुकर जाने को जी चाहता है तेरी आँखों में तो रहते हुए इक उम्र हुई अब तिरे दिल में उतर जाने को जी चाहता है मुद्दतों बाद तिरा क़ुर्ब मिला है मुझ को आज हर हद से गुज़र जाने को जी चाहता है बर्क़-रफ़्तार गुज़रती हूँ वहीं से 'रख़्शाँ' जिस जगह मेरा ठहर जाने को जी चाहता है