जाँ से गुज़रे भी तो दरिया से गुज़ारेंगे तुम्हें साथ मत छोड़ना हम पार उतारेंगे तुम्हें तुम सुनो या न सुनो हाथ बढ़ाओ न बढ़ाओ डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें दिल पे आता ही नहीं फ़स्ल-ए-तरब में कोई फूल जान, इस शाख़-ए-शजर पर तो न वारेंगे तुम्हें खेल ये है कि किसे कौन सिवा चाहता है जीत जाओगे तो जाँ नज़्र गुज़ारेंगे तुम्हें कैसी ज़ेबाई है जब से तुम्हें चाहा हम ने और चाहेंगे तुम्हें और संवारेंगे तुम्हें इश्क़ में हम कोई दावा नहीं करते लेकिन कम से कम मार्का-ए-जाँ में न हारेंगे तुम्हें