जाग जाने पर न जाने क्यूँ दोबारा सो गया बादलों के दरमियाँ रौशन सवेरा हो गया बीच दरिया में घिरी कश्ती पर निशाँ सब के सब धुँद की चादर कोई ओढ़े किनारा खो गया थक थका कर रुक गया पुर-जोश राही का सफ़र धूप के साए में जिस दम गर्म सहरा हो गया ख़ुश-गवारी बादबानों से अयाँ होने लगी साहिलों पर जा के जब दरिया का दरिया सो गया क़हक़हों को रोक कर देखे 'शबीना' लम्हा-भर ग़म की चौखट पर कोई आधा-अधूरा हो गया