जान दे देंगे करिश्मों पे क़ज़ा से पहले मर ही जाएँगे तिरे नाज़-ओ-अदा से पहले रिसते हैं ज़ख़्म-ए-जिगर क़ब्ल-ए-नमक-अफ़्शानी मेंह बरसता है मिरे घर में घटा से पहले बोसा ख़ुद देते हैं और ख़ुद ही बिगड़ जाते हैं लुत्फ़ फ़रमाते हैं आशिक़ पे जफ़ा से पहले ख़ुद-ब-ख़ुद आते हैं वो पास ये तासीरों का जा लगा तीर निशाना पे दुआ से पहले क़स्द-ए-बोसा ही पे दिल फांसते हैं गेसू में फाँसी देते हैं वो मुजरिम को ख़ता से पहले वो सनम और के हिस्से में न आता ऐ 'अज़ीज़' माँग लेता जो उसे रो के ख़ुदा से पहले