जान देते ही बनी इश्क़ के दीवाने से शम्अ का हाल न देखा गया परवाने से आतिश-ए-इश्क़ से जल जल गए परवाने से पहले ये आग लगी काबा ओ बुत-ख़ाने से साक़िया गिर्या-ए-ग़म से मुझे मजबूर समझ ख़ून रिसता है ये टूटे हुए पैमाने से रात की रात चमन में है नुमूद-ए-शबनम सुब्ह होते ही बिखर जाएँगे सब दाने से दम-ए-आख़िर तिरी आँखों की बलाएँ ले लूँ और दम भर जो न छलके मिरे पैमाने से हाए क्या चीज़ थीं वो मस्त निगाहें 'शाइर' झूमता-झामता निकला हूँ परी-ख़ाने से