जान इक ज़रबत-ए-शमशीर-ए-दो-दम और सही तन-ए-सद-चाक पे दुनिया के सितम और सही ताक़त-ए-जुंबिश-ए-यक-गाम नहीं है लेकिन तेरे कूचे की तरफ़ एक क़दम और सही हैं मिरे दिल को बहुत दर्द मयस्सर फिर भी आप की याद का इक दस्त-ए-करम और सही साँस बाक़ी है सो चलता ही चला जाऊँगा जू-ए-ग़म और सही ज़ोर-ओ-सितम और सही फिर हुई जाती है पैदा हवस-ए-सज्दा-ए-शौक़ दिल के मंदिर में कोई ताज़ा सनम और सही कोई नक़्क़ाद न ठहरा मिरे आगे 'काज़िम' मुद्द'आ यूँ है कि इक शैख़-ए-हरम और सही