जान जाता है अब तो आ जानी हिज्र की आग पर छिड़क पानी दामन ओ आस्तीं कूँ रो रो कर ख़ून-ए-दिल सीं किया हूँ अफ़्शानी ज़ुल्फ़ तेरी सीं दाद पाऊँगा हात आई है अब परेशानी लाला-रू फिर बहार आई है क्यूँ न हुए फूल की फ़रावानी गंज-ए-मख़्फ़ी सीं आश्ना है 'सिराज' जब सीं हुई है निगाह रहमानी