जान ले ले न ज़ब्त-ए-आह कहीं रो लिया कीजे गाह गाह कहीं इब्तिदाई जो एक ख़दशा था खुल न जाए उसी पे राह कहीं होने वाली है ये फ़ज़ा रंगीन अब्र होने लगे सियाह कहीं ये सुहुलत है ज़िंदगी को बहुत रब्त होता रहे निबाह कहीं और कुछ देर ग़म नज़र में रख क्या ख़बर मिल ही जाए थाह कहीं हैफ़ सर से गुज़र गया पानी धोने आए थे हम गुनाह कहीं