जान सी आ गई है जान में क्या कह गए हैं वो मेरे कान में क्या मुझ से हाल-ए-दिल-ए-तबाह न पूछ अब है उजड़े हुए मकान में क्या मेरा हर ज़ख़्म क्यों महकता है फूल रखते हो तुम कमान में क्या पूछते हैं मुझे दिखा के शफ़क़ ख़ून बरसा है आसमान में क्या बात कहने से पेशतर सोचो तीर लौट आएगा कमान में क्या तेरा जल्वा है और कुछ भी नहीं तू ही तो है भरे जहान में क्या बे-वफ़ा उस को रू-ब-रू कहिए पड़ गए क़ुफ़्ल अब ज़बान में क्या प्यार होंटों पे और दिल में फ़रेब क्या ज़बाँ पर है और गुमान में क्या 'एहतिशाम' एक लफ़्ज़-ए-ग़म की जगह और है तेरी दास्तान में क्या