जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है ज़िंदगी आप से फिर दीदा-ए-नम माँगे है हम कहाँ जाएँगे अब तेरी गली से उठ कर किस का दिल है जो यहाँ दैर-ओ-हरम माँगे है मुझ को फूलों की हवस है न तो मोती की तलाश कासा-ए-चश्म मिरा दस्त-ए-करम माँगे है चश्म-ए-नम को किसी दामन की तमन्ना ही सही दिल-ए-बेताब मगर आप का ग़म माँगे है जाने किस वास्ते इक शख़्स की बहकी हुई चाल हर-क़दम आप के ही नक़्श-ए-क़दम माँगे है कोई दीवाना तमन्नाओं को ज़ख़्मी पा कर ज़िंदगी-भर के लिए रंज-ओ-अलम माँगे है आइना-ख़ानों की यक-रंगी से उक्ता के 'रईस' आज़र-ए-वक़्त भी पत्थर के सनम माँगे है